ECONOMIC SURVEY 2022-23: मुख्य विशेषताएं
वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत की GDP विकास दर 6.0 से 6.8 प्रतिशत रहेगी, जो वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर है।
इस वृद्धि दर के लिए निम्नलिखित सकारात्मक कारण जिम्मेदार हैं: निजी खपत में मजबूती जिसमें उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा दिया है; पूंजीगत व्यय की उच्च दर (कैपेक्स); सार्वभौमिक टीकरकरण कवरेज, जिसने कनेक्टिविटी आधारित सेवाओं – रेस्टोरेंट, होटल, शोपिंगमॉल, सिनेमा आदि – के लिए लोगों को सक्षम किया है; शहरों के निर्माण स्थलों पर प्रवासी श्रमिकों के लौटने से हाउसिंग मार्किट इन्वेंटरी में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है, कॉरपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्रों में मजबूती; पूंजी युक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो ऋण देने में वृद्धि के लिए तैयार हैं तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उध्यम क्षेत्र के लिए ऋण में बढ़ोत्तरी।
कोविड-19 के तीन लहरों तथा रूस-यूक्रेन संघर्ष के बावजूद एवं फेडरल रिजर्व के नेतृत्व में विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों द्वारा महंगाई दर में कमी लाने की नीतियों के कारण अमेरिकी डॉलर में मजबूती दर्ज की गई है और आयात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं का चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ा है। दुनियाभर की एजेंसियों ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था माना है, जिसकी विकास दर वित्त वर्ष 2023 में 6.5 – 7.0 प्रतिशत रहेगी।
सर्वेक्षण कहता है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार प्रदान कर रही है और अप्रत्यक्ष तौर पर ग्रामीण परिवारों को अपनी आय के स्रोतों में बदलाव लाने में मदद कर रही है। PM किसान और PM गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाएं देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है और इनके प्रभावों को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने भी अनुशंसा प्रदान की है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के परिणामों ने भी दिखाया है कि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 तक ग्रामीण कल्याण संकेतक बेहतर हुए हैं, जिनमें लिंग, प्रजनन दर, परिवार की सुविधाएं और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) से पता चलता है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए शहरी बेरोजगारी दर सितंबर 2021 को समाप्त तिमाही में 9.8 प्रतिशत से घटकर एक वर्ष बाद (सितंबर 2022 को समाप्त तिमाही में) 7.2 प्रतिशत हो गई। इसके साथ-साथ श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में भी सुधार हुआ है। यह वित्त वर्ष 2023 की शुरुआत में अर्थव्यवस्था के महामारी से प्रेरित मंदी से उभरने की पुष्टि करता है।क्रय शक्ति समता (PPP) के अनुसार भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बाजार विनिमय दरों में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
2018-19 के 55.6 प्रतिशत की तुलना में पुरूषों के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 57.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2018-19 के 18.6 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिए श्रम बल सहभागिता दर 2020-21 में 25.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2018-19 के 19.7 प्रतिशत से 2020-21 के 27.7 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण महिला श्रम बल सहभागिता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
31 दिसम्बर, 2022 तक, ई-श्रम पोर्टल पर कुल 28.5 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का पंजीकरण किया जा चुका है। कुल में से महिला पंजीकरणों की संख्या 52.8 प्रतिशत थी तथा कुल पंजीकरणों में से 61.7 प्रतिशत 18-40 वर्ष के आयु समूह के थे। राज्य वार कुल पंजीकरणों में से लगभग आधे उत्तर प्रदेश (29.1 प्रतिशत), बिहार (10.0 प्रतिशत) तथा पश्चिम बंगाल (9.0 प्रतिशत) के थे। कृषि क्षेत्र श्रमिकों ने कुल पंजीकरणों में 52.4 प्रतिशत का योगदान दिया जिसके बाद स्थानीय एवं घरेलू श्रमिक (9.8 प्रतिशत) और निर्माण श्रमिक (9.1 प्रतिशत) का स्थान रहा।
वर्ष 2015 से 2021 के बीच शहरी क्षेत्रों में 158 प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट ग्राहकों की संख्या ने 200 प्रतिशत की वृद्धि सरकार की ग्रामीण और शहरी डिजिटल संपर्क मे समानता लाने के लिए प्रोत्साहन में वृद्धि प्रदर्शित करती है।
भारत में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2022 में तीन चरणों में आयी। अप्रैल, 2022 तक इसके बढ़ने का चरण था जब यह 7.8 प्रतिशत पर जा पहुंची, फिर अगस्त, 2022 तक यह लगभग 7.0 प्रतिशत तक बनी रही और फिर दिसम्बर, 2022 तक यह गिरकर लगभग 5.7 प्रतिशत तक आ गई। इसमें वृद्धि का कारण मुख्य रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामों और देश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी के कारण फसल कटाई में कमी रही। ग्रीष्म मौसम में अत्यधिक गर्मी तथा उसके बाद देश के कुछ हिस्सों में विषम वर्षा ने कृषि क्षेत्र को प्रभावित किया, आपूर्ति में कमी आई और इसके कारण कुछ प्रमुख उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हुई।
थोक मूल्य मुद्रास्फीति दर बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में लगभग 13.0 प्रतिशत तक पहुंच गई। डब्ल्यूपीआई में मई, 2022 में 16.6 प्रतिशत के इसके शीर्ष से गिरावट आती रही है और यह सितम्बर, 2022 में 10.6 प्रतिशत तथा और गिरकर दिसम्बर, 2022 में 5.0 प्रतिशत पर आ गई।
कृषि क्षेत्र पिछले छह वर्षों से 4.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक विकास दर से मजबूत बढ़ोतरी दर्शा रहा है। इससे कृषि और संबद्ध गतिविधियां क्षेत्र देश के समग्र प्रगति विकास और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ रहा। इसके अलावा हाल के वर्षों में देश कृषि उत्पादों के सकल निर्यातक के रूप में उभरा है और वर्ष 2021-22 में निर्यात 50.2 बिलियन अमरीकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है।
भारत विश्व में जैविक खेती (Organic Farming) की संख्या में सबसे आगे है। सर्वेक्षण के अनुसार 2021-22 तक जैविक खेती के तहत 44.3 लाख और 59.1 लाख हेक्टेयर रकबा लाया गया है। जैविक और प्राकृतिक खेती रसायन और कीटनाशक, मुफ्त खाद्यान्न और फसलें उपलब्ध कराते हैं और जमीन के स्वास्थ्य को बेहतर बनाकर पर्यावरणीय प्रदूषण कम करते है।
सरकार ने वर्ष 2022-23 में कृषि क्रेडिट प्रवाह में 18.5 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य निर्धारित किया था। सरकार ने प्रत्येक वर्ष इस लक्ष्य में लगातार वृद्धि की है और सरकार पिछले कुछ वर्षों से हर वर्ष निर्धारित लक्ष्य को पीछे छोड़ने में समर्थ रही है। यह 16.5 लाख करोड़ के निर्धारित लक्ष्य से लगभग 13 प्रतिशत अधिक है।
जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों के बावजूद 2021-22 में भारत में कुल अनाज उत्पादन रिकॉर्ड 315.7 मिलियन टन तक पहुंच गया। इसके अलावा प्रथम अग्रिम अनुमान 2022-23 (केवल खरीद) के अनुसार देश में कुल अनाज उत्पादन का अनुमान 149.9 मिलियन टन है जो पिछले पांच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत खरीद अनाज उत्पादन से बहुत अधिक है। दालों का उत्पादन भी पिछले पांच वर्षों के औसत 23.8 मिलियन टन से बहुत अधिक रहा है।
स्वास्थ्य पर कुल व्यय में सरकार का हिस्सा वित्त वर्ष 2014 में 28.6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 40.6 प्रतिशत हो गया।
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PM-JAY) के अंतर्गत 4 जनवरी 2023 तक 21.90 करोड़ लाभार्थियों का सत्यापन किया गया है। इसमें राज्यों की सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली के अंतर्गत सत्यापित 3 करोड़ लाभार्थी शामिल हैं।
सामाजिक सेवाओं के व्यय में वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 2021 में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वित्त वर्ष 2021 की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में 31.4 प्रतिशत की और वृद्धि हुई।
MPI पर यूएनडीपी की 2022 की रिपोर्ट के आधार पर, भारत में 16.4 प्रतिशत आबादी (2020 में 228.9 मिलियन लोग) बहुआयामी रूप से गरीब हैं जबकि अतिरिक्त 18.7 प्रतिशत को बहुआयामी गरीबी (2020 में 260.9 मिलियन लोग) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सर्वेक्षण के मुताबिक, राजकोषीय घाटे का वित्त वर्ष 2023 में GDP के 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।